राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 148वीं जयंती पर केंद्र सरकार के प्रोत्साहन से भारत में गांधी जयंती को ‘स्वच्छता ही सेवा’ के रूप में मनाया जा रहा है। महात्मा गांधी ने स्वच्छता कार्यक्रम की शुरुआत 1934 में ही कर दी थी जब वह यूपी के सबसे बड़े औद्योगिक शहर कानपुर आए थे। इस शहर में उन्होंने मलिन बस्तियों का दौरा कर लोगों को गंदगी से दूर रहने की सलाह भी दी थी। इस दौरान बापू इतने मायूस हो गए कि उन्हें देखकर लोगों की आंखों में आंसू तक आ गए थे।
22 जुलाई, 1934 को महात्मा गांधी कानपुर में स्वच्छता एवं हरिजन सेवा के कार्यक्रम में आए थे। ग्वालटोली मलिन बस्ती में गंदगी देखकर वह इतना दुखी हो गए कि एक महिला से झाड़ू लेकर स्वयं सफाई में जुट गए। लोग स्तब्ध थे। कई लोगों की आंखों में आंसू आ गए। इस तीन दिवसीय प्रवास के दौरान वह कई मलिन बस्तियों में गए और सफाई के प्रति जागरूक किया।महात्मा गांधी अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव में कानपुर पहुंचे तो यहां की ग्वालटोली, मीरपुर, खटिकाना, सेटेलमेंट, फोर्ब्स कंपाउंड, लक्ष्मीपुरवा, हड्डी गोदाम सहित 30 मलिन बस्तियों में भी गए। यहां उन्होंने गंदगी साफ करने के लिए युवाओं का आह्लान किया। कानपुर शहर में प्रवास के दौरान 22 जुलाई, 1934 को परेड की जनसभा में उन्होंने गंदगी साफ करने में सवर्णो की हिचक का संदर्भ लेते हुए कहा कि आंदोलन का हमारा लक्ष्य सिर्फ चंदे से पूरा नहीं होता। यह तो दिलों, खास कर सवणरें के दिलों के पिघलने से प्राप्त होगा।
एक दिन बाद 24 जुलाई को क्वींस पार्क (अब सीएसए) में एसडी कॉलेज छात्रों व हरिजनों की संयुक्त सभा में उन्होंने कहा कि स्वच्छता सेवा का एक पवित्र कार्य है। गंदगी साफ करने वाले से उतना ही प्यार करें, जितना आप एक नर्स, डॉक्टर या मां से करते हैं। अगले दिन 25 जुलाई को ग्वालटोली में युवाओं से मुखातिब बापू ने कहा था कि यहां की गंदगी दुखी करने वाली है। उनको स्वच्छता के लिए आगे आना चाहिए।मोहनदास करम चंद गांधी भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के अगुवा थे। सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतो पर चलकर उन्होंने भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके इन सिद्धांतों ने पूरी दुनिया में लोगों को नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता आन्दोलन के लिये प्रेरित किया. सुभाष चंद्र बोस ने वर्ष 1944 में रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ कहकर सम्बोधित किया था।
हर साल उन्हें याद करने की सिर्फ रश्म अदायगी की जाती है। कभी उनके आदर्शो के साथ गांव-गांव चिंतन के चबूतरे हुआ करते थे। इन्हीं चबूतरों में गांधी दर्शन दिख जाता था, जिसमें बड़े-बड़े मामले सुलझ जाते थे। इलाहाबाद में यूं तो गांधी जी से जुड़ी सैकड़ों यादें हैं लेकिन, इन यादों में कुछ ऐसी रहीं जो आम लोगों के जन-जीवन में शामिल हैं। 1 आजादी के बाद पूरे प्रदेश में गांधी की अहिंसावादी विचारधारा पर गंभीर मंथन हुआ था। पूरे प्रदेश में गांधी दर्शन की झलकियां गांव-गांव दिखें, इसके लिए पांच हजार से अधिक गांधी चबूतरों की स्थापना हुई थी। गांधी दर्शन की इन झलकियों में ग्राम पंचायत स्तर पर आम लोगों का बैठका, गांधी चबूतरों में शामिल था परंतु अफसोस है कि इन गांधी चबूतरों का अस्तित्व मिट चुका है। आनंद भवन और स्वराज भवन को छोड़कर कहीं भी उनके आदर्शो को सहेजने की शिद्दत नहीं दिखती है।
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